हनुमान चालीसा: पवनपुत्र हनुमान की स्तुति में अद्भुत पाठ | Radha Geet"

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हनुमान चालीसा: पवनपुत्र की महिमा

हनुमान चालीसा, गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित एक अद्भुत स्तुति है जो भगवान हनुमान जी के अद्वितीय गुणों और उनके भक्तों के प्रति करुणामय स्वभाव का वर्णन करती है। इस चालीसा का नियमित पाठ सभी प्रकार की समस्याओं को दूर करता है और भक्त को साहस, बल और विजय प्रदान करता है।


हनुमान चालीसा का महत्व

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हनुमान जी को भक्तों के संकट दूर करने वाले, भय का नाश करने वाले और अपार शक्ति के स्वामी के रूप में जाना जाता है।

हनुमान चालीसा पढ़ने के लाभ:


1. जीवन की सभी बाधाओं को दूर करना।


2. शत्रुओं पर विजय प्राप्त करना।


3. मन की शांति और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह।


4. शारीरिक और मानसिक बल की वृद्धि।


Radha Geet YouTube Channel पर हनुमान चालीसा का विशेष भजन


हमारे Radha Geet यूट्यूब चैनल पर, राजेंद्र कुमार की मधुर आवाज़ में प्रस्तुत हनुमान चालीसा सुनें। यह भजन आपको भक्ति और आनंद से भर देगा।


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हनुमान चालीसा

(तुलसीदास जी द्वारा रचित)


दोहा

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि।

बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि॥


बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।

बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार॥



चौपाई


जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।

जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥


रामदूत अतुलित बलधामा।

अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥


महावीर विक्रम बजरंगी।

कुमति निवार सुमति के संगी॥


कंचन बरन बिराज सुबेसा।

कानन कुंडल कुंचित केसा॥


हाथ वज्र और ध्वजा बिराजै।

काँधे मूँज जनेऊ साजै॥


शंकर सुवन केसरी नंदन।

तेज प्रताप महा जग वंदन॥


विद्यावान गुनी अति चातुर।

राम काज करिबे को आतुर॥


प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।

राम लखन सीता मन बसिया॥


सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।

बिकट रूप धरि लंक जरावा॥


भीम रूप धरि असुर संहारे।

रामचंद्र के काज संवारे॥


लाय सजीवन लखन जियाये।

श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥


रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।

तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥


सहस बदन तुम्हरो जस गावे।

अस कहि श्रीपति कंठ लगावे॥


सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।

नारद सारद सहित अहीसा॥


यम कुबेर दिगपाल जहाँते।

कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥


तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।

राम मिलाय राजपद दीन्हा॥


तुम्हरो मंत्र विभीषण माना।

लंकेश्वर भए सब जग जाना॥


जुग सहस्र जोजन पर भानू।

लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥


प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही।

जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥


दुर्गम काज जगत के जेते।

सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥


राम दुआरे तुम रखवारे।

होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥


सब सुख लहे तुम्हारी सरना।

तुम रक्षक काहू को डरना॥


आपन तेज सम्हारो आपै।

तीनों लोक हांक तें कांपै॥


भूत पिशाच निकट नहिं आवै।

महावीर जब नाम सुनावै॥


नासे रोग हरै सब पीरा।

जपत निरंतर हनुमत बीरा॥


संकट तें हनुमान छुड़ावै।

मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥


सब पर राम तपस्वी राजा।

तिनके काज सकल तुम साजा॥


और मनोरथ जो कोई लावै।

सोय अमित जीवन फल पावै॥


चारों जुग परताप तुम्हारा।

है परसिद्ध जगत उजियारा॥


साधु संत के तुम रखवारे।

असुर निकंदन राम दुलारे॥


अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।

अस बर दीन जानकी माता॥


राम रसायन तुम्हरे पासा।

सदा रहो रघुपति के दासा॥


तुम्हरे भजन राम को पावै।

जनम जनम के दुख बिसरावै॥


अंत काल रघुबर पुर जाई।

जहां जन्म हरिभक्त कहाई॥


और देवता चित्त न धरई।

हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥


संकट कटै मिटै सब पीरा।

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥


जय जय जय हनुमान गोसाई।

कृपा करहु गुरुदेव की नाई॥


जो सत बार पाठ कर कोई।

छूटहि बंदि महा सुख होई॥


जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।

होय सिद्धि साखी गौरीसा॥


तुलसीदास सदा हरि चेरा।

कीजै नाथ हृदय महं डेरा॥




दोहा

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥


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हनुमान चालीसा (पूर्ण पाठ)


(ऊपर दिया गया है)



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