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गणेश जी और चंद्रदेव की कथा |चंद्रदेव का उपहास और गणेश जी का क्रोध Click here
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यह कथा उन दिनों की है जब गणेश जी को मोदक (लड्डू) बहुत प्रिय थे। एक बार गणेश चतुर्थी के दिन, भगवान गणेश को उनके भक्तों ने ढेर सारे मोदक का भोग लगाया। गणेश जी ने प्रेमपूर्वक सारे मोदक खा लिए, और उनका पेट बहुत बड़ा हो गया। उन्होंने सोचा कि अब उन्हें थोड़ा टहलना चाहिए ताकि पाचन ठीक रहे।
गणेश जी अपने मूषक (चूहे) पर सवार होकर वन में भ्रमण करने लगे। लेकिन उनके भारी शरीर के कारण मूषक थोड़ा लड़खड़ाने लगा। तभी अचानक मूषक ने एक सांप को देखा और डरकर भागने की कोशिश में गणेश जी को गिरा दिया। गणेश जी धूल में गिर गए, और उनके पेट के सारे मोदक चारों ओर बिखर गए।
चंद्रदेव का उपहास
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यह सब आकाश से चंद्रदेव देख रहे थे। जैसे ही उन्होंने गणेश जी को गिरते हुए और मोदकों के साथ संघर्ष करते देखा, वे जोर-जोर से हंसने लगे। चंद्रदेव का उपहास सुनकर गणेश जी बहुत क्रोधित हो गए।
गणेश जी ने चंद्रदेव को घूरते हुए कहा, "हे चंद्रदेव, तुम्हारे इस अपमानजनक व्यवहार के लिए मैं तुम्हें श्राप देता हूँ। आज से तुम्हारी चमक और गौरव समाप्त हो जाएगा, और कोई भी तुम्हें देखना नहीं चाहेगा।"
चंद्रदेव का पश्चाताप
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चंद्रदेव को जैसे ही अपनी गलती का एहसास हुआ, वे तुरंत गणेश जी के चरणों में गिर पड़े। उन्होंने हाथ जोड़कर कहा, "हे गणपति बप्पा, मुझसे भूल हो गई। मैं आपके अपमान के योग्य नहीं हूँ। कृपया मुझे क्षमा करें और अपना श्राप वापस लें।"
गणेश जी ने उनकी प्रार्थना सुनकर कहा, "चंद्रदेव, तुम्हारा यह अपमानजनक व्यवहार स्वीकार्य नहीं था। लेकिन चूंकि तुमने अपनी गलती मान ली है, मैं अपने श्राप को थोड़ा कम करता हूँ। तुम हर दिन घटोगे और बढ़ोगे। अमावस्या के दिन तुम्हें कोई नहीं देख पाएगा, लेकिन पूर्णिमा के दिन तुम फिर से अपनी पूर्ण चमक में दिखाई दोगे।"
कथा का संदेश
इस घटना के बाद, चंद्रदेव ने कभी किसी का उपहास नहीं किया। इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी किसी का मज़ाक नहीं उड़ाना चाहिए, क्योंकि यह हमारा अपना अहंकार दर्शाता है। भगवान गणेश हमें विनम्रता और दूसरों के सम्मान का पाठ सिखाते हैं।
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