भगवान विष्णु और भक्त अम्बरीष की कथा भक्त की भक्ति का चमत्कार
बहुत समय पहले की बात है। अयोध्या नगरी में अम्बरीष नाम के एक राजा राज करते थे। राजा अम्बरीष बड़े ही धर्मपरायण और भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। वे हर दिन अपनी प्रजा के लिए न्याय करते, और उसके बाद भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना में लीन हो जाते। उनकी भक्ति इतनी गहरी थी कि वह हर एक कार्य भगवान विष्णु को समर्पित करके ही करते थे।
राजा अम्बरीष ने एक दिन अपनी भक्ति के फलस्वरूप एकादशी व्रत रखने का निश्चय किया। उन्होंने पूरे विधि-विधान से व्रत रखा और द्वादशी (व्रत के अगले दिन) पर भगवान विष्णु के चरणों में अर्पण करने के लिए भोग तैयार किया।
महर्षि दुर्वासा का आगमन
जब राजा अम्बरीष अपने व्रत का पारण करने वाले थे, तभी महर्षि दुर्वासा उनके राजमहल में आए। राजा ने महर्षि का आदरपूर्वक स्वागत किया और कहा, "हे ऋषिवर, कृपया भोजन ग्रहण कर इस व्रत को पूर्ण करें।"
दुर्वासा ऋषि ने कहा, "मैं पहले स्नान करूंगा, फिर भोजन करूंगा।"
यह कहकर वे स्नान के लिए चले गए।
धर्म संकट
महर्षि के लौटने में बहुत समय लगने लगा, और द्वादशी का समय समाप्त होने वाला था। यदि राजा ने समय पर व्रत का पारण नहीं किया, तो उनका व्रत अधूरा रह जाएगा, जो धर्म के विपरीत था। राजा ने विचार किया और भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए जल ग्रहण कर व्रत का पारण कर लिया।
जब महर्षि दुर्वासा लौटे और उन्हें यह पता चला कि राजा ने उनके बिना व्रत का पारण कर लिया है, तो वे क्रोधित हो गए। उन्होंने क्रोध में आकर राजा को श्राप देने का निश्चय किया, "अम्बरीष, तुमने मेरा अपमान किया है। मैं तुम्हें श्राप देता हूँ कि तुम इस पाप के लिए दंड भोगोगे।"
भगवान विष्णु की रक्षा
महर्षि दुर्वासा ने जैसे ही श्राप देने के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग किया, उसी समय भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र प्रकट हुआ और राजा अम्बरीष की रक्षा के लिए महर्षि दुर्वासा का पीछा करने लगा।
डरे हुए दुर्वासा ऋषि पूरे ब्रह्मांड में भागे—ब्रह्मा जी, शिव जी के पास गए, लेकिन किसी ने उनकी रक्षा नहीं की। अंततः वे भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे प्रार्थना की, "हे प्रभु, मुझे क्षमा करें और सुदर्शन चक्र को रोकें।"
भगवान विष्णु ने कहा, "हे ऋषिवर, मेरा भक्त अम्बरीष मेरी आत्मा है। मैंने अपनी शक्ति उसे समर्पित कर दी है। यदि आप राजा से क्षमा मांगेंगे, तो ही यह संकट टल सकता है।"
दुर्वासा ऋषि का पश्चाताप
महर्षि दुर्वासा राजा अम्बरीष के पास लौटे और उनसे क्षमा मांगी। राजा ने तुरंत उन्हें क्षमा कर दिया और सुदर्शन चक्र वापस चला गया। महर्षि दुर्वासा ने राजा अम्बरीष की विनम्रता और भक्ति को देख उनकी प्रशंसा की और आशीर्वाद देकर चले गए।
कथा का संदेश
इस कथा से यह सीख मिलती है कि भगवान अपने सच्चे भक्तों की हमेशा रक्षा करते हैं। विनम्रता और भक्ति से बड़े से बड़ा सं
कट भी टल सकता है।
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