कार्तिक पूर्णिमा: पवित्रता, पुण्य और आध्यात्मिक जागृति का पर्व



प्रस्तावना:

कार्तिक पूर्णिमा हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है जिसे विशेष रूप से पवित्रता, भक्ति और आस्था का प्रतीक माना जाता है। कार्तिक मास की पूर्णिमा को यह पर्व मनाया जाता है और इसे देव दीपावली के रूप में भी जाना जाता है, जो दिवाली के 15 दिन बाद आता है। इस दिन का महत्त्व न केवल धार्मिक रूप से है, बल्कि यह पर्यावरण और आध्यात्मिकता के प्रति समर्पण का भी पर्व है।


कार्तिक पूर्णिमा का धार्मिक महत्त्व:


1. भगवान शिव और विष्णु का दिन: इस दिन भगवान विष्णु और शिवजी की विशेष पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से समस्त पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।



2. देव दीपावली का पर्व: इसे देवताओं की दिवाली के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन देवता पृथ्वी पर आकर काशी में दीपदान का आयोजन करते हैं, जिससे पूरा वातावरण पावन हो उठता है।



3. धार्मिक अनुष्ठान और दीपदान: कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने के बाद दीपदान का विशेष महत्त्व है। इसे करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है।




पर्व की पौराणिक कथाएँ:


1. त्रिपुरासुर वध कथा: भगवान शिव ने इसी दिन त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था, जिसके बाद देवताओं ने प्रसन्न होकर दीपों का उत्सव मनाया था।



2. माता तुलसी विवाह: कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी का विवाह भगवान शालिग्राम से करने की परंपरा है, जिससे परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है।




पर्व का महत्व और लाभ:

कार्तिक पूर्णिमा पर किए गए दान, दीपदान और व्रत का धार्मिक और सामाजिक महत्त्व है। मान्यता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने और दान देने से कई गुना पुण्य प्राप्त होता है, और पवित्रता का संचार होता है। यह पर्व हमें प्रकृति और परमात्मा के प्रति अपनी आस्था को सुदृढ़ करने की प्रेरणा देता है।


उपसंहार:

कार्तिक पूर्णिमा का पर्व न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे जीवन में सद्भाव, पुण्य और शुद्धता का संचार करने का संदेश भी देता है। इस दिन का पर्व हमारे धार्मिक विश्वासों और आस्थाओं को सुदृढ़ बनाता है और हमें मोक्ष के मार्ग

 पर चलने की प्रेरणा देता है।


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